Saturday, December 22, 2012

रमेश तैलंग : एक रिश्ता बना रखा है.
















न कोई खत, न कोई मेरा पता रखा है. 
मगर उसने अभी एक रिश्ता बना रखा है.

दोस्ती थी तो मेरा नाम नहीं लेता था,
दुश्मनी है तो मुझे दिल में बसा रखा है.

दीन दुनिया की खबर यूं नहीं मुझे कुछ भी,
पर तेरे होने का एहसास बचा रखा है.

जानता तो हूं मगर उससे कभी पूछा नहीं,
क्यों मेरा नाम कलाई पे गुदा रखा है. 

मैंने यह सोच के हर चीज वहीं रहने दी,
वो कल न पूछ ले, आईना कहां रखा है.

यूं तो रोमानी हुए हमको ज़माना गुज़रा,
फिर भी एक बादल आंखों में छुपा रखा है.

- रमेश तैलंग

Friday, December 21, 2012

फहीम क़रार : दिल में घर नहीं करता




















मै मुहब्बत अगर नहीं करता।
आपके दिल में घर नहीं करता।।

तेरी यादें भी साथ रहती हैं।
मै अकेला सफर नहीं करता।।

हसरतों के चिराग बुझ जाते।
वो जो आंचल इधर नहीं करता।।

ज़ख्म ऐसे भी कुछ मिले जिन पर।
कोई मरहम असर नहीं करता।।

टूट जाते 'क़रार' सब रिश्ते।
आना जाना अगर नहीं करता।।

फहीम क़रार

Thursday, December 20, 2012

मुस्तफ़ा माहिर : झगडा निकल आया





















फ़क़त छोटी सी इक अनबन हुई झगडा निकल आया.
क़बीलों का ज़रा सी बात पर शिजरा निकल आया.

ये सब बेकाम की बातें भी कितनी काम की निकलीं,
भले हो दूर का तुमसे मगर रिश्ता निकल आया.

मैं अपनी तिश्नगी को जिस जगह आया था दफनाकर ,
सुना है आजकल मैंने वहा दरया निकल आया.

जुदा होकर तू मुझसे ज़िन्दगी कैसे गुजारेगा,
अभी दो रोज़ बीते हैं तेरा चेहरा निकल आया.

दुआ फिर ज़िन्दगी को मौत के मुंह से बचा लायी,
कि बच्चा फिर गिरा गढ्ढे में औ ' जिंदा निकल आया.

मुझे लगता था दिल है आपका जज़्बात से खाली,
कनस्तर में मगर दो वक़्त का आटा निकल आया.

थे दिन बचपन के जैसे गर्मियों कि छुट्टियां मेरी,
खुला स्कूल तो स्टोर से बस्ता निकल आया.
मुस्तफ़ा माहिर  पंतनगरी 

मुस्तफ़ा माहिर : वो जो गया, गया














क्या उसकी राह देखना वो जो गया, गया ।
हमसे न जाने कितनी दफा ये कहा गया।

उकसा गया था कोई सियासत की आंधियां,
उढ़कर किसी की आँख में तिनका चला गया

जिसके लिए थे जाम शाम सारी रौनकें ,
वो ही हमारी बज्म से प्यासा चला गया ।

ऊंचाइयों से अपने तलक हो गए खफा,
हम पंछियों को शाख का भी आसरा गया।

खामोशियों की कर जो रहा था वकालतें,
आंखों को बोलने का सलीका सिखा गया।


मुस्तफ़ा माहिर  पंतनगरी 

मुस्तफ़ा माहिर : मुजरिम हमेशा चंद रहते हैं
















दिखावे के लिए मुजरिम हमेशा चंद रहते हैं
सलाखों में यहाँ मासूम सारे बंद रहते हैं

वो चाहे दर्द दे या मुफलिसी दे या परेशानी
मगर हम हर घडी उसके अकीदत मंद रहते हैं

भरोसा टूट जाए तो मुहब्बत रूठ जाती है
ये कच्चे रास्ते बरसात हो तो बंद रहते हैं

तुम्हारी कीमती पोशाक से अलमारियां फुल हैं
मेरे त्यौहार के कपड़ों में भी पैवंद रहते हैं

हमेशा वक़्त पर देते हैं धोखा ज़िम्मेदारी से
मेरे अपने हों कैसे भी मगर पाबंद रहते हैं

अंधेरों की चलो आँखों में आँखें डाल दूं मैं ही,
उजालो के यहाँ बुझदिल ज़रूरतमंद रहते हैं.

मुस्तफ़ा माहिर  पंतनगरी 

Tuesday, December 18, 2012

रंजन विशद : बदला है सदा मौसम





















बदला है सदा मौसम बदली न कहानी है।
हर बार मोहब्बत ने कुछ करने की ठानी है।

दौलत की अदालत में इन्साफ भला कैसा,
उल्फ़त के परिन्दों को बस जान गवानी है।

चाहे तो कोई देखे हर चाँद के माथे पर,
बेदर्द ज़माने की ठोकर की निशानी है।

तेबर ये तरंगों के क्या देखेगा वो जिनकी,
तूफाँ से उलझने की आदत ही पुरानी है।

उम्मीदों के पंखों से नभ नापने वालों की,
हर शाम नशीली है, हर सुबह सुहानी है।

कुछ और सितम दुनिया करती है तो करने दो,
हमको तो मोहब्बत की बस जोत जलानी है।

रंजन विशद 



नहीं चिन्ता अभी मैं हूँ शुरु के पायदानो पर






नहीं चिन्ता अभी मैं हूँ शुरु के पायदानो पर।
बहुत जल्दी नज़र आयेंगे हम ऊँची उड़ानो पर।।

हमें देखों न यों कमतर नज़र से ऐ जहाँ वालों!
हमारी सुर्खिया होंगी तुम्हारे आसमानो पर।

अगर चाहों तो करके देख लो तुलना किसी से भी।
बहुत भारी पड़ेगे हम वफ़ा के इम्तिहानो पर।।

घटाओ तुम तो ज़र के घर पे ही जाकर बरसती हो।
कभी तो आके बरसो धूप में तपते किसानो पर।

नज़र नापाक दुश्मन की टिकी है अपनी सीमा पर।
कसे रहना जवानो तीर तुम अपनी कमानो पर।।

ज़माने के थपेड़ों से उबरना चाहते हो तो,
कभी विश्वास मत करना ‘विशद’ झूठे फसानो पर।।

रंजन विशद 

शर्म के भाव बहुत मन्दे हैं




















कौन सी नस्ल के यह वन्दे हैं।
जिनके आमाल इतने गन्दे हैं।।

ज़िन्दगी भर नहीं सुलझ पाये,
मोह माया के ऐसे फन्दे  हैं।

ख़ानकाहों की चमक के पीछे,
अहले-दौलत के स्याह चन्दे  हैं।

लक्ष्य तो ख़ुद व खु़द बता देंगे,
किसकी बन्दूक किसके कन्धे हैं।

कैसा माहौल होगा जिस घर में,
बाप बहरे हों बेटे अन्धे  हैं।

ख़ुली सड़कों पे डोलती है ‘विशद’,
शर्म के भाव बहुत मन्दे  हैं।

रंजन विशद 



हजारों जुल्म लोग सहते हैं











हजारों जुल्म लोग सहते हैं।
फिर भी मुख से न कुछ भी कहते हैं

उन्हें डर कैसा छत दरकने का,
जो खुले आसमाँ में रहते हैं।

क्यों करें बात रुकने झुकने की,
हम तो लहरों के संग बहते हैं।

दिल की बस्ती में अब तो रोज़ाना,
उसूलों के मकान ढहते हैं।

बर्फ बनकर कभी पिघलते है,
और कभी शोला बनके दहते हैं।

रंजन विशद 

फहीम क़रार : गले लगाना तुम














हमेशा प्यार से उनको गले लगाना तुम।
कभी गरीब का हरगिज़ न दिल दुखाना तुम।।

अभी तो सोए हैं थककर ख्याल के पंछी।
न मेरे जहन की टहनी अभी हिलाना तुम।।

अजीब बात है शीशे के घर यह कहते हैं।
लगाओ ठीक से हम पर कोई निशाना तुम।।

उन्हीं के दर  'प' हमे पूछता नहीं कोई।
जो हमसे कहते थे मुश्किल पड़े तो आना तुम।।

मिरे मज़ार से अपने चिराग़ ले जाओ।
किसी गरीब के घर में इन्हें जलाना तुम।।

फहीम क़रार

Monday, December 17, 2012

फहीम क़रार : देखता रहता हूँ मै



इस तरह आँखों में उसकी देखता रहता हूँ मै।
जैसे फुर्सत में फ़लक को ताकता रहता हूँ मै।।

अपनी गलती का मुझे एहसास रत्ती भर नहीं।
दूसरों में ऐब लेकिन ढूंढता रहता  हूँ मै।।

इस तरह क्या वो भी मुझको याद करता है कभी।
जिस तरह उसके हक में सोचता रहता हूँ ।।

फहीम क़रार

फहीम क़रार : क्यों विरोधाभास है





















इस जगत में आज इतना क्यों विरोधाभास है।
झूठ है सिर का मुकुट और सत्य का उपहास है।।

जिनको होना चाहिए था आज कारावास में।
आज उनके पास अपनी कार है, आवास है।।

 फहीम क़रार

सुशील कुमार : एक वक़्त हुआ करता था













वो भी एक वक़्त हुआ करता था

तुम कलाई की घडी से अक्सर
सूरज का सिक्का मेरी आँखों पे चमकाती थीं 

आज एक उम्र के बाद
फिर वही सूरज का सिक्का डाला 
फिर उसी चौक के टेलीफोन पर जाकर
तुम्हारे पुराने नंबर को घुमाया मैंने .....

सुशील कुमार शुक्ला

सुशील कुमार : तुम जब साथ होती हो















तुम जब साथ होती हो
तो मुझमे
एक गिलहरी दौड़ती-फिरती है बातों की 

हवा यूँ सरसराती है
कि जैसे पानी से खाली बूंदें
बजती हों पानी की 
या जैसे चुप्पियाँ बजती हैं 
नींद से खाली रातों की

तुम जब साथ होती हो ...





सुशील कुमार शुक्ला 

डॉ राजेश शर्मा : हस्तक्षेप जारी हे












हस्तक्षेप जारी हे 

गहरी नींद में सोने वालों 
आओ देखो उनको 
जिनकी आखों में 
नींद का एक कतरा भी नहीं ,
जिनकी नींद के सारे हिस्से 
चुरा लिए हे तुमने 
लाखों ,करोडो की नींदों को
तुमने भर लिया हे
अपने स्वर्ण रथ पर
और तेज़ी से हाँकते हुए
दौड़ा रहे हो उसे राजपथ पर
राजा की उस नींद के लिए
जिसकी पैरवी
संसद के पिछले सत्र में हुई थी ,
गाँवो ,बीहड़ो ,शेहरों ,प्रान्तों की
नींदे लादते लादते
कुछ नींदे गिर गयी
रथ के पहियों के नीचे
तुम्हे विदा करने वाले
तुम्हारे बिलकुल ख़ास लोग
रथ के रवाना होते ही
उन नींदों को उठा लाये
और खुद भी सो गए ,
मैने कहा कि
हस्तक्षेप जारी हे
तुम्हारा भी और हमारा भी
जहाँ जहाँ से तुम
नींदें बुहार के ले गए हो
वहाँ अब
आँखें खुली हे .

डॉ राजेश शर्मा

फहीम क़रार : न ही वो प्यार, न चाहत है




















न ही वो प्यार, न चाहत है , यह हम जानते हैं।

उनको बस हंसने आदत है, ये हम जानते हैं।।


उँगलियाँ हम पे उठाती रहे दुनिया लेकिन।
अपना  किरदार सलामत है यह हम जानते हैं।।

ज़िक्र ग़ैरों का मेरे सामने छेड़ो जितना।
तुमको हम से ही मुहब्बत है, यह हम जानते हैं।।



फहीम क़रार

फहीम क़रार : परिंदों की फड़फड़ाहट से



कुछ परिंदों की फड़फड़ाहट से।
 काले बादल की गड़गड़ाहट से।।

आजकल बढ़ गया है खौफ इतना।
लोग डरते हैं अपनी आहट से।।

फहीम क़रार

रमेश तैलंग : बरसात ने भिगो डाला















कल की बरसात ने भिगो डाला
पुराना दाग था एक, धो डाला.

बाद मुद्दत के धूप अच्छी लगी ,
बाद मुद्दत के पढ़ी मधुशाला.

याद आई, गए ज़माने की एक
नर्गिसी फ़िल्म,वो छतरी वाला.

एक बच्चे ने मेरे अंदर से,
खिलखिलाकर मुझे चौंका डाला.

जिंदगी फिर से खुशगवार लगी
जैसे नज़रों से हट गया जाला.


 रमेश तैलंग

Sunday, December 16, 2012

डा.भैरूंलाल गर्ग : जीवन धन्य वही है



















स्वाभिमान से जिया गया है, जीवन धन्य वही है
वचनबद्धता निभा गया है, जीवन धन्य वही है .


लोभ-लाभ में पड़कर जिसने जीवनमूल्य नहीं खोए
जग में पूजा सदा गया है, जीवन धन्य वही है .




- सर्वथा मौलिक /-डा.भैरूंलाल गर्ग

मुस्तफ़ा माहिर : वो बाइसे - क़रार हो तो हो























वो बाइसे - क़रार हो तो हो रहे तो हो रहे 
रक़ीब हो कि यार हो तो हो रहे तो हो रहे 

हमें तो बोलना है सच, हमें तो खोलना है सच 
भले ही जान ख़्वार हो तो हो रहे तो हो रहे 

विसाल का यकीन था विसाल का यकीन है
तवील इंतज़ार हो तो हो रहे तो हो रहे

फ़क़ीर तो फ़क़ीर है जो कह दिया सो कह दिया
ये शाह का दयार हो तो हो रहे तो हो रहे

ये प्यार पाक है मगर है पत्थरों पे बेअसर
ये याद यादगार हो तो हो रहे तो हो रहे

तुम्हारे लफ्ज़ थे दुआ, तुम्हारा लम्स था दवा
ज़माना ग़मगुसार हो तो हो रहे तो हो रहे

गुलों ने खूब जी लिया हयात का हर एक पल
ये आखिरी बहार हो तो हो रहे तो हो रहे

तुम्हारी याद के दिए जो दिन ढला जला लिए
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे तो हो रहे

( मुस्तफ़ा माहिर )
#बाइसे-करार = करार की वजह, रकीब= दुश्मन विसाल = मुलाक़ात, तवील इंतज़ार= लम्बा इंतज़ार, गमगुसार= गम में शामिल होना , हयात= ज़िन्दगी

फहीम क़रार : चंदा सा लगता है
















शबनम, मोती, नरगिस, नगमा और चंदा सा लगता है
वो मुझको तपते सहरा में इक दरिया सा लगता है

उसकी बातों के रंगों में अपनेपन की  खुशबू है।
उसका लहज़ा ग़ज़लों में भीगा- भीगा सा लगता है।।

गुमनामी के इस जंगल में खुद को न खो बैठें हम।
आओ चलो वो सामने कोई इक रस्ता सा लगता है।।

फहीम क़रार


फहीम क़रार : हर पत्थर खामोश रहा।




















आंगन, दर्पन, दीवारों का हर पत्थर खामोश रहा।
एक तेरे न होने से सारा घर खामोश रहा।।

बोल रही थी हर एक मूरत, मेरी कीमत क्या दोगे।
न जाने क्या सोच समझ कर सौदागर  खामोश रहा।।

फहीम क़रार

फहीम क़रार : ताज़ा गुलाब देता था
















हमेशा प्यार के ताज़ा गुलाब देता था
वो मेरी बात का हंस कर जवाब देता था

खबर मिली है ज़हर दे दिया गया उसको
जो सबकी फिक्र को एक इन्कलाब देता था

फहीम क़रार

रमेश तैलंग : कद्र की कद्र करने वाले हों.

















कद्र की कद्र करने वाले हों.
तो अंधेरों में भी उजाले हों.

ऐसी दुनिया का क्या करें हम 
आंख पर पर्दे, मुंह पर ताले हों.

झील का दुःख भला वो क्या जाने,
जिसने पत्थर सदा उछाले हों.

यूं तो मुमकिन नहीं लगे मुझको
कत्लगाहों में भी शिवाले हों.

पर कहीं होंगे लोग जो अब भी
डूबती कश्तियाँ संभाले हों.

- रमेश तैलंग






वसीम बरेलवी : आते आते मेरा नाम सा..


आते आते मेरा नाम सा रह गया
उसके होंठों पे कुछ कांपता  रह गया

झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गये
और मै था कि सच बोलता रह गया

वसीम बरेलवी

















मुहब्बत में ज़रा सी बेवफाई भी ज़रूरी है 
वही अच्छा भी लगता है जो वादे तोड़ देता है


वसीम बरेलवी

ख्वाब आँखों को नए रोज़ दिखाते रहना


ख्वाब आँखों को नए रोज़ दिखाते रहना
तुम बिछड़ के भी मेरा साथ निभाते रहना

रौशनी चाहिए जिसको वो खुद ही आ जायेगा
अपना मकसद है चिरागों को जलाते रहना


फहीम क़रार