शबनम, मोती, नरगिस, नगमा और चंदा सा लगता है
वो मुझको तपते सहरा में इक दरिया सा लगता है
उसकी बातों के रंगों में अपनेपन की खुशबू है।
उसका लहज़ा ग़ज़लों में भीगा- भीगा सा लगता है।।
गुमनामी के इस जंगल में खुद को न खो बैठें हम।
आओ चलो वो सामने कोई इक रस्ता सा लगता है।।
फहीम क़रार
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