Tuesday, December 10, 2013

सिया सचदेव : रिश्तों कि कायनात में सिमटी हुई हूँ मैं







रिश्तों कि कायनात में सिमटी हुई हूँ मैं 
मुद्दत से अपने आप को भूली हुई हूँ मैं 

गो ख़ुशनसीब हूँ मेरे अपनों का साथ हैं 
तन्हाइयों से फिर भी क्यों लिपटी हुई हूँ मैं 

आती है याद आपकी मुझको कभी कभी 
ऐसा नहीं कि आपको भूली हुई हूँ मैं 

उस चाराग़र को ज़ख्म दिखाऊ या चुप रहूँ 
इस कश्मकश में आज भी उलझी हुई हूँ मैं

हूँ फिक्रमंद आज के हालात देख कर
बेटी कि माँ हूँ इस लिए सहमी हुई हूँ मैं

जज़्बात कैसे नज़्म करू अपने शेर में
कब से इसी ख्य़ाल में डूबी हुई हूँ मैं

बेकार ज़िंदगी में ये कैसी ख़लिश सिया
सब कुछ मिला है फिर भी कमी ढूढ़ती हूँ मैं 

















सिया सचदेव