कभी यूँ मिलें कोई मसलेहत, कोई ख़ौफ़ दिल में ज़रा न हो
سحر... ایک نئے سفر کا آغاز
Friday, February 10, 2023
Sunday, February 5, 2023
तेरे जैसा कोई मिला ही नहीं : फ़हमी बदायूनी
तेरे जैसा कोई मिला ही नहीं
कैसे मिलता कहीं पे था ही नहीं
घर के मलबे से घर बना ही नहीं
ज़लज़ले का असर गया ही नहीं
मुझ पे हो कर गुज़र गई दुनिया
मैं तिरी राह से हटा ही नहीं
कल से मसरूफ़-ए-ख़ैरियत मैं हूँ
शेर ताज़ा कोई हुआ ही नहीं
रात भी हम ने ही सदारत की
बज़्म में और कोई था ही नहीं
यार तुम को कहाँ कहाँ ढूँडा
जाओ तुम से मैं बोलता ही नहीं
याद है जो उसी को याद करो
हिज्र की दूसरी दवा ही नहीं
Sunday, December 3, 2017
दिल चीज़ क्या है आप मिरी जान लीजिए
दिल चीज़ क्या है आप मिरी जान लीजिए
शहरयार
दिल चीज़ क्या है आप मिरी जान लीजिए
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए
इस अंजुमन में आप को आना है बार बार
दीवार-ओ-दर को ग़ौर से पहचान लीजिए
माना कि दोस्तों को नहीं दोस्ती का पास
लेकिन ये क्या कि ग़ैर का एहसान लीजिए
कहिए तो आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाएँ
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए
शहरयार
भूली-बिसरी यादों की बारात नहीं आई
इक मुद्दत से हिज्र की लम्बी रात नहीं आई
आती थी जो रोज़ गली के सोने नुक्कड़ तक
आज हुआ क्या वो परछाईं साथ नहीं आई
मुझ को तआ'क़ुब में ले आई इक अंजान जगह
ख़ुश्बू तो ख़ुश्बू थी मेरे हाथ नहीं आई
इस दुनिया से उन का रिश्ता आधा-अधूरा है
जिन लोगों तक ख़्वाबों की सौग़ात नहीं आई
ऊपर वाले की मन-मानी खलने लगी है अब
मेंह बरसा दो-चार दफ़ा बरसात नहीं आई
शहरयार
Monday, November 13, 2017
अपनी जगह है
हर शाम सँवरने का मज़ा अपनी जगह है
हर रात बिखरने का मज़ा अपनी जगह है
खिलते हुए फूलों की मुहब्बत के सफ़र में
काँटों से गुज़रने का मज़ा अपनी जगह है
अल्लाह बहुत रहमों-करम वाला है लेकिन
लेकिन अल्लाह से ड़रने का मजा अपनी जगह है
अकील नोमानी
बरेली।
Tuesday, August 29, 2017
Thursday, August 10, 2017
ऐसा लगता है इबादत को चले आते हैं : siya
Saturday, January 25, 2014
सुनील संवेदी : जिंदगी क्यों उदास रहती है!
जिंदगी क्यों उदास रहती है!
जिंदगी क्यों उदास रहती है
तू कभी दूर.दूर रहती है
तो कभी आसपास रहती है।
जिंदगी क्यों उदास रहती है।
पत्थरों के जिगर को क्या देखें
ये भी चुपचाप कहा करते हैंए
यूं पड़े हैं पड़ी हो लाश कोई
ये भी कुछ दर्द सहा करते हैं
बेकरारी है ख्वाहिशें भी हैं
उनसे मिलने की प्यास रहती है।
जिंदगी क्यों उदास रहती है।
चंद रंगीनियों से बांधा है
ज्यों मदारी का ये पुलिंदा होए
आसमानों की खूब बात करे
बंद पिंजरे का ज्यों परिंदा होए
हो मजारों पे गुलाबी खुश्बूए
बात हो आमए खास रहती है।
जिंदगी क्यों उदास रहती है।
क्यों सितारों में भटकती आंखें
क्यों जिगर ख्वाहिशों में जीता हैए
क्यों जुंवा रूठ.रूठ जाती है
क्यों बशर आंसुओं को पीता हैए
क्यों नजर डूब.डूब जाती है
फिर भी क्यों एक आस रहती है।
जिंदगी क्यों उदास रहती है।
रात भर रोशनी में रहता हूूंए
अब तलक रौशनी नहीं देखीए
चांद निकला है ठीक है यारोंए
पर अभी चांदनी नहीं देखीए
और क्या देखने को बाकी है
जिंद में जिंदा लाश रहती है।
जिंदगी क्यों उदास रहती है।
सुनील संवेदी
Tuesday, December 10, 2013
सिया सचदेव : रिश्तों कि कायनात में सिमटी हुई हूँ मैं
रिश्तों कि कायनात में सिमटी हुई हूँ मैं
मुद्दत से अपने आप को भूली हुई हूँ मैं
गो ख़ुशनसीब हूँ मेरे अपनों का साथ हैं
तन्हाइयों से फिर भी क्यों लिपटी हुई हूँ मैं
आती है याद आपकी मुझको कभी कभी
ऐसा नहीं कि आपको भूली हुई हूँ मैं
उस चाराग़र को ज़ख्म दिखाऊ या चुप रहूँ
इस कश्मकश में आज भी उलझी हुई हूँ मैं
हूँ फिक्रमंद आज के हालात देख कर
बेटी कि माँ हूँ इस लिए सहमी हुई हूँ मैं
जज़्बात कैसे नज़्म करू अपने शेर में
कब से इसी ख्य़ाल में डूबी हुई हूँ मैं
बेकार ज़िंदगी में ये कैसी ख़लिश सिया
सब कुछ मिला है फिर भी कमी ढूढ़ती हूँ मैं
सिया सचदेव