Thursday, December 20, 2012

मुस्तफ़ा माहिर : मुजरिम हमेशा चंद रहते हैं
















दिखावे के लिए मुजरिम हमेशा चंद रहते हैं
सलाखों में यहाँ मासूम सारे बंद रहते हैं

वो चाहे दर्द दे या मुफलिसी दे या परेशानी
मगर हम हर घडी उसके अकीदत मंद रहते हैं

भरोसा टूट जाए तो मुहब्बत रूठ जाती है
ये कच्चे रास्ते बरसात हो तो बंद रहते हैं

तुम्हारी कीमती पोशाक से अलमारियां फुल हैं
मेरे त्यौहार के कपड़ों में भी पैवंद रहते हैं

हमेशा वक़्त पर देते हैं धोखा ज़िम्मेदारी से
मेरे अपने हों कैसे भी मगर पाबंद रहते हैं

अंधेरों की चलो आँखों में आँखें डाल दूं मैं ही,
उजालो के यहाँ बुझदिल ज़रूरतमंद रहते हैं.

मुस्तफ़ा माहिर  पंतनगरी 

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