سحر... ایک نئے سفر کا آغاز
Sunday, December 16, 2012
फहीम क़रार : हर पत्थर खामोश रहा।
आंगन, दर्पन, दीवारों का हर पत्थर खामोश रहा।
एक तेरे न होने से सारा घर खामोश रहा।।
बोल रही थी हर एक मूरत, मेरी कीमत क्या दोगे।
न जाने क्या सोच समझ कर सौदागर खामोश रहा।।
फहीम क़रार
1 comment:
FAHEEM QARAR
said...
welcome
January 4, 2013 at 12:11 PM
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1 comment:
welcome
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