Sunday, December 16, 2012

फहीम क़रार : हर पत्थर खामोश रहा।




















आंगन, दर्पन, दीवारों का हर पत्थर खामोश रहा।
एक तेरे न होने से सारा घर खामोश रहा।।

बोल रही थी हर एक मूरत, मेरी कीमत क्या दोगे।
न जाने क्या सोच समझ कर सौदागर  खामोश रहा।।

फहीम क़रार