Sunday, December 3, 2017

दिल चीज़ क्या है आप मिरी जान लीजिए

दिल चीज़ क्या है आप मिरी जान लीजिए

शहरयार

दिल चीज़ क्या है आप मिरी जान लीजिए
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए
इस अंजुमन में आप को आना है बार बार
दीवार-ओ-दर को ग़ौर से पहचान लीजिए
माना कि दोस्तों को नहीं दोस्ती का पास
लेकिन ये क्या कि ग़ैर का एहसान लीजिए
कहिए तो आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाएँ
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए

शहरयार

भूली-बिसरी यादों की बारात नहीं आई
इक मुद्दत से हिज्र की लम्बी रात नहीं आई

आती थी जो रोज़ गली के सोने नुक्कड़ तक
आज हुआ क्या वो परछाईं साथ नहीं आई

मुझ को तआ'क़ुब में ले आई इक अंजान जगह
ख़ुश्बू तो ख़ुश्बू थी मेरे हाथ नहीं आई

इस दुनिया से उन का रिश्ता आधा-अधूरा है
जिन लोगों तक ख़्वाबों की सौग़ात नहीं आई

ऊपर वाले की मन-मानी खलने लगी है अब
मेंह बरसा दो-चार दफ़ा बरसात नहीं आई

शहरयार

Monday, November 13, 2017

अपनी जगह है

हर शाम सँवरने का मज़ा अपनी जगह है
हर रात बिखरने का मज़ा अपनी जगह है

खिलते हुए फूलों की मुहब्बत के सफ़र में
काँटों से गुज़रने का मज़ा अपनी जगह है

अल्लाह बहुत रहमों-करम वाला है लेकिन
लेकिन अल्लाह से ड़रने का मजा अपनी जगह है

अकील नोमानी
बरेली।

Thursday, August 10, 2017

ऐसा लगता है इबादत को चले आते हैं : siya

जब भी हम तेरी ज़ियारत को चले आते हैं
ऐसा लगता है इबादत को चले आते हैं
बस दिखावे की मुहब्बत को चले आते हैं
लोग रस्मन भी अयादत को चले आते हैं
देखकर आपको इस दिल को क़रार आ जाए
अपनी आँखों की ज़रुरत को चले आते हैं
जब भी घबराने सी लगती है तबीयत अपनी
ऐ ग़ज़ल हम तिरी ख़िदमत को चले आते हैं।
हम फकीराना तबियत हैं हमें क्या लेना
लोग बेवज्हा सियासत को चले आते हैं।