Monday, April 22, 2013
हवाएँ रुख़ बदलती हैं तो मिलना छोड़ देते हैं
हवाएँ रुख़ बदलती हैं तो मिलना छोड़ देते हैं ,
परिंदे क्या हैं वो जो डरके उड़ना छोड़ देते हैं ।
अगर दुश्मन ज़माना आशियाना ही जला डाले ,
तो ज़िंदा लोग क्या फिर घर बनाना छोड़ देते हैं ।
कभी भी भूलके बच्चों से अपना ग़म नहीं कहना ,
तुम्हारे ख़्वाबों से वो सपने बुनना छोड़ देते हैं ।
समंदर बीच कश्ती में ज़रा सूराख़ हो जाए ,
तो चूहे सबसे पहले वो ठिकाना छोड़ देते हैं ।
न रिश्तों का कोई मतलब न उम्रों की कोई दूरी ,
कई मासूम बचपन में ही हँसना छोड़ देते हैं ।
बुज़ुर्गों ने दिया भरपूर सरमाया शराफ़त का ,
किसी को क्या कहें जब हम ही रखना छोड़ देते हैं ।
-------------------------------------------------
(सुधाकर अदीब )
ख़ामी तुझी में है के ज़माना खराब है
ख़ामी तुझी में है के ज़माना खराब है
आखिर सभी को तुझसे ये क्यूं इज्तेनाब है
क्यंू ख़्वाहिशों को ज़ीस्त का उनवां बनाए हो
जब जानते हो ज़ीस्त मिसाले हबाब है
क्यूं उसकी कुरबतों से भला रोकते हैं लोग
वह मेरी जागती हुई आंखों का ख्वाब है
अंजाम उसका चाहे रसन हो के दार हो
फनकार है वही जो हकीकत निगार हो
बन जाए फिर तो एक तमाशा ये जि़न्दगी
इन्सां को जि़न्दगी पे अगर इखि़्तयार हो
किस जी से मुस्कुराएगा ’राही’ फिर आदमी
हर लम्हा-ए-हयात अगर दिल पे बार हो
कलाम- राशिद हुसैन ’राही’,
ऐमन जई, जलाल नगर, शाहजहांपुर उ.प्र. 242001
मेबाइल नं. 09369536775
Tuesday, April 9, 2013
इस तरह से रौशनी का साथ हो : मुस्तफ़ा माहिर
इस तरह से रौशनी का साथ हो
तेरी मेरी सबकी उजली रात हो
ज़िन्दगी की राह में हर मोड़ पर
तुम ही मिल जाओ तो फिर क्या बात हो
साहिले -दरया पे मुमकिन ये भी है
इक बड़ी सी तिश्नगी तैनात हो
दिन थकन अपनी उतारेगा अभी
अच्छा हो जो अपने घर में रात हो
दिल को दे तू लम्स यादों कि अब
सूखे-चटके खेत में बरसात हो
(मुस्तफ़ा माहिर)
Subscribe to:
Posts (Atom)