Monday, April 22, 2013

हवाएँ रुख़ बदलती हैं तो मिलना छोड़ देते हैं














हवाएँ रुख़ बदलती हैं तो मिलना छोड़ देते हैं ,
परिंदे क्या हैं वो जो डरके उड़ना छोड़ देते हैं । 

अगर दुश्मन ज़माना आशियाना ही जला डाले ,
तो ज़िंदा लोग क्या फिर घर बनाना छोड़ देते हैं । 

कभी भी भूलके बच्चों से अपना ग़म नहीं कहना ,
तुम्हारे ख़्वाबों से वो सपने बुनना छोड़ देते हैं । 

समंदर बीच कश्ती में ज़रा सूराख़ हो जाए ,
तो चूहे सबसे पहले वो ठिकाना छोड़ देते हैं । 

न रिश्तों का कोई मतलब न उम्रों की कोई दूरी ,
कई मासूम बचपन में ही हँसना छोड़ देते हैं । 

बुज़ुर्गों ने दिया भरपूर सरमाया शराफ़त का ,
किसी को क्या कहें जब हम ही रखना छोड़ देते हैं । 
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(सुधाकर अदीब )

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