इस तरह से रौशनी का साथ हो : मुस्तफ़ा माहिर
इस तरह से रौशनी का साथ हो
तेरी मेरी सबकी उजली रात हो
ज़िन्दगी की राह में हर मोड़ पर
तुम ही मिल जाओ तो फिर क्या बात हो
साहिले -दरया पे मुमकिन ये भी है
इक बड़ी सी तिश्नगी तैनात हो
दिन थकन अपनी उतारेगा अभी
अच्छा हो जो अपने घर में रात हो
दिल को दे तू लम्स यादों कि अब
सूखे-चटके खेत में बरसात हो
(मुस्तफ़ा माहिर)
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