ख़ामी तुझी में है के ज़माना खराब है
आखिर सभी को तुझसे ये क्यूं इज्तेनाब है
क्यंू ख़्वाहिशों को ज़ीस्त का उनवां बनाए हो
जब जानते हो ज़ीस्त मिसाले हबाब है
क्यूं उसकी कुरबतों से भला रोकते हैं लोग
वह मेरी जागती हुई आंखों का ख्वाब है
अंजाम उसका चाहे रसन हो के दार हो
फनकार है वही जो हकीकत निगार हो
बन जाए फिर तो एक तमाशा ये जि़न्दगी
इन्सां को जि़न्दगी पे अगर इखि़्तयार हो
किस जी से मुस्कुराएगा ’राही’ फिर आदमी
हर लम्हा-ए-हयात अगर दिल पे बार हो
कलाम- राशिद हुसैन ’राही’,
ऐमन जई, जलाल नगर, शाहजहांपुर उ.प्र. 242001
मेबाइल नं. 09369536775
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