Saturday, January 25, 2014

सुनील संवेदी : जिंदगी क्यों उदास रहती है!






















जिंदगी क्यों उदास रहती है!

जिंदगी क्यों उदास रहती है
तू कभी दूर.दूर रहती है
तो कभी आसपास रहती है।
जिंदगी क्यों उदास रहती है।

पत्थरों के जिगर को क्या देखें
ये भी चुपचाप कहा करते हैंए
यूं पड़े हैं पड़ी हो लाश कोई
ये भी कुछ दर्द सहा करते हैं
बेकरारी है ख्वाहिशें भी हैं
उनसे मिलने की प्यास रहती है।
जिंदगी क्यों उदास रहती है।

चंद रंगीनियों से बांधा है
ज्यों मदारी का ये पुलिंदा होए
आसमानों की खूब बात करे
बंद पिंजरे का ज्यों परिंदा होए
हो मजारों पे गुलाबी खुश्बूए
बात हो आमए खास रहती है।
जिंदगी क्यों उदास रहती है।

क्यों सितारों में भटकती आंखें
क्यों जिगर ख्वाहिशों में जीता हैए
क्यों जुंवा रूठ.रूठ जाती है
क्यों बशर आंसुओं को पीता हैए
क्यों नजर डूब.डूब जाती है
फिर भी क्यों एक आस रहती है।
जिंदगी क्यों उदास रहती है।

रात भर रोशनी में रहता हूूंए
अब तलक रौशनी नहीं देखीए
चांद निकला है ठीक है यारोंए
पर अभी चांदनी नहीं देखीए
और क्या देखने को बाकी है
जिंद में जिंदा लाश रहती है।
जिंदगी क्यों उदास रहती है।

सुनील संवेदी

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